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रोसड़ा:नौजवानों की हुंकार ने बदल दी राजनीति की हवा

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मोहम्मद आलम

रोसड़ा (समस्तीपुर) – कल रोसड़ा की सड़कों पर नौजवानों का जो सैलाब उमड़ा, उसने इलाके की राजनीति का रुख ही बदल दिया। यह भीड़ सिर्फ गुस्से का इजहार नहीं थी, बल्कि एक साफ संदेश था कि अब जनता खोखले वादों से ठगाई नहीं खाएगी। जनप्रतिनिधियों को यह चेतावनी दी जा चुकी है – “अबकी बार हिसाब होगा।”

जनता का सवाल – “वोट के बदले मिला क्या?”

गुस्साए युवाओं ने सवाल उठाया –
“जनप्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद गायब हो जाते हैं। रोसड़ा की टूटी सड़कें, जाम, जर्जर स्कूल और बदहाल अस्पताल किसे दिखते हैं? क्या जनता का वोट सिर्फ कुर्सी दिलाने के लिए था?”

इतिहास गवाह है – जब जनता उठती है तो सिंहासन हिलते हैं

रोसड़ा की यह हुंकार किसी साधारण विरोध की आवाज़ नहीं, बल्कि इतिहास के उस सबक की याद दिलाती है जिसमें जनता ने बार-बार नेताओं को सत्ता से बाहर का रास्ता दिखाया है।
 1977 में इंदिरा गांधी जैसी ताक़तवर प्रधानमंत्री भी जनता की अदालत से हार गई थीं।
 बिहार की राजनीति में भी कई बार नेताओं को जनता ने सिर्फ इसलिए ठुकरा दिया क्योंकि उन्होंने इलाके की सुध नहीं ली।

भविष्यवाणी साफ – अबकी बार बख्शा नहीं जाएगा

रोसड़ा के नौजवानों ने साफ कर दिया है कि अगला चुनाव विकास बनाम वादाखिलाफी पर लड़ा जाएगा।
“रोसड़ा अब सिर्फ वादे सुनने वाला नहीं, हिसाब मांगने वाला बन चुका है।”
 “जो काम करेगा वही टिकेगा, बाकी सब बाहर का रास्ता देखेंगे।”

रोसड़ा की नई पहचान – जागरूक जनता, मजबूत आवाज़

यह आंदोलन केवल आक्रोश नहीं, बल्कि रोसड़ा की खोई हुई प्रतिष्ठा को वापस पाने की लड़ाई है। नौजवानों की यह एकजुटता आने वाले चुनावों में राजनीति का चेहरा बदलने वाली है।

अंतिम चेतावनी

"विकास नहीं तो वोट नहीं – अबकी बार रोसड़ा की जनता अपनी ताक़त दिखाएगी।"

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